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परिहा (अक्षर बतीसी) बतीसी ५६ टलिये नहीं विवहार, ग्रही निज टेक रे। वात सहु नौ दीसे एह विवेक रे। निखरौ ही धर्मसी कहे ल्यो निरवाह रे। परिहा महादेव विप राख्यो ज्यु गल माहि रे।। ११ ॥ ठाम देखि उपगार करो कहियौ ठठे। . तत्त तणी तू बात म नाखि जठे तठे। कीजै नहीं धर्मसी उपगार कुजायगा। परिहा सीह नी आखि उघाड्या सीह ज खायगा ॥ १२ ॥ डेरा आइ दीया दिन च्यार कहे डडौ। गयो हस तब काय बलो भावै गडौ । वाय वाय मिल जायें, मट्टी मट्टीया। परिहा खूब किया धर्मसीह, जिणे जस खट्टीया ।। १३ ।। ढंढो ढाढस लागि, दोस मिस कहै ढ ढो। " पारद गोली पाक करौ पोथा पढ़ो। जंत्र मत्र बहु तत्र जोवो जोतिष जडी। परिहा घाट बाध धर्मसीह न होइ तिका घड़ी ॥ १४ ॥ नहु लघीजै लीह, एक मावीत री। राखीजे वलि लीह सदा रज रीति री। ईस तणी इक लीह धरो धर्मसीह अखी। परिहा राणे आखर न्याय त्रिणे रेखा रखी ॥ १५॥ तत्त जाणी इक बात तिका कहै छ त तो। माया. संचै सुव तिको खोटी मतो।।