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________________ चोवीस तीर्थकर पुराण * De mocracunuTurrena W ERELAMMsa. urauturinemPELamAILINCavtarmerometaSEITAL समय उसके शरीर की शोभा बड़ी ही विचित्र हो गई थी। उसका सुन्दर रूप देखकर स्त्रियों का मन काम से आकुल हो उठता था। निदान, मन्त्री आदि की सलाह से योग्य कुलोन विद्याधर कन्याओं के साथ उसका विवाह होगया। अव राजा महावल धर्म अर्थ और कामका समान रूपसे सेवन करने लगा। इसके महामति, संभिन्नमति, शतमति और स्वयंबुद्ध नामके चार मन्त्री थे। ये चारों मन्त्री राज्य कार्यमें बहुत ही चतुर थे। राजा जो भी कार्य करता था वह मन्त्रियोंकी सलाह से ही करता था इसलिए उसके राज्यमें किसी प्रकारको बाधायें नहीं आने पाती थीं। ऊपर जिन चार मन्त्रियोंका कथन किया है उसमें स्वयंवुद्धको छोड़कर बाकी तीन मन्त्री महा मिथ्यादृष्टि थे इसलिए वे मह वल तथा स्वयंवुद्ध आदिके साथ धार्मिक विषयोंमें विद्वेष रखा करते थे। पर सहाबलको राजनीतिमें उनसे कोई बाधा नहीं आती थी। स्वयंयुद्ध मन्त्री सच्चा जिनभक्त था वह हमेशा महाबलके हित चिंतनमें लगा रहता था। किसी समय अलकापुरीमें राजा महाबलकी वर्ष गांठका उत्सव मनाया जा रहा था। वाजोंके शब्दोंसे आकश गूंज रहा था और चारों ओर स्त्रियोंके सुन्दर संगीत सुनाई पड़ रहे थे। एक विशाल सभामण्डप बनवाया गया था जिसकी सजावटके सामने इन्द्रभवनकी भी सजावट फीकी लगनी थी। उस मण्डपमें सोनेके एक ऊंचे सिंहासन पर महाराज महावल वैठे हुए थे। उन्हींके आस पास मन्त्री लोग भी बैठे थे। और भण्डपकी शेप जगह दर्शकोंले खचाखच भरी हुई थी। लोगोंके हृदय आनन्दसे उमड़ रहे थे। विद्वानोंके व्याख्यान और तत्व चर्चाओंसे वह सभा बहुत ही सलो मालूम होती है । समय पाकर महामति, संमिम्नमति और शतमति मन्त्रियोंने अनेक कल्पित युक्तियोंसे जीव, अजीवका खण्डन कर दिया, स्वर्गमोक्षका अभाव बतलाया तथा मिथ्यात्वको बढ़ानेवाली अनेक विपरीत क्रियाओंका उपदेश दिया जिससे समस्त सभा क्षोभ मच गया और लोग आपसमें काना फूसी करने लगे। यह देख राजासे आज्ञा लेकर स्वयंबुद्ध मन्त्री खड़े हुए। स्वयंयुद्धके खड़े होते सब हो हल्ला शान्त होगया लोग चुप चाप उनका व्याख्यान सुनने लगे। रवयंवुद्धने अनेक युक्तियोंसे जीव अजीव आदि तत्वोंका समर्थन किया तथा a Ramanan HendenceTRAINE M OSTEENaam
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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