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* चौबीस तीथकर पुराण *
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दिया था उससे पराजित होकर कल्पवृक्ष, कामधेनु और चिन्तामणि रत्न भी भूलोक छोड़ कहीं अन्यत्र जा छिपे थे। कच्छ महाकच्छ आदि राजाओंने मिल कर पुत्रका जन्मोत्सव मनाया और उसका "भरत' नाम रक्खा। भरत अपनी बाल चेष्टाओंसे माता पिता का मन हर्पित करता हुआ बढ़ने लगा।
भगवान् वृषभनाथके वज्रजंघ भवमें जो आनन्द नामका पुरोहित था और और कम क्रमसे सर्वार्थ सिद्धिमें अहमिन्द्र हुआ था वह कुछ समय बाद यशस्वतीके वृषभसेन नामका पुत्र हुआ। फिर क्रम क्रमसे सेठ धनमित्र, शाईलार्य वराहार्य, वानरार्य, और नकुलार्यके जीव सर्वार्थ सिद्धिसे च्युत होकर उसी यशस्वतीके क्रमसे अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, और वरवीर नामके पुत्र हुए। इस तरह भरतके याद महादेवी यशस्वतीके निन्यानवे पुत्र और ब्राह्मी नामक पुत्री उत्पन्न हुई। अब वृषभनाथ की दूसरी पत्नी सुनन्दा का हाल सुनिये।
किसी दिन रातके समय सुनन्दाने भी उत्तम स्वप्न देखे जिसके फल स्वरूप उसके गर्भ में वज्रजंघभवका सेनापति जो कम कूमसे सर्वार्थ सिद्धि में अहमिन्द्र हुआ था अवतीर्ण हुआ। नौ माहके बाद सुनन्दाने बाहुबली नामका पुत्र उत्पन्न किया । बाहुयलो का जैसा नाम था वैसे ही उसमें गुण थे। उसकी वीर चेष्टाओंके सामने यशस्वती के समस्त पुत्रोंको मुहकी खानी पड़ती थी। वृषभेश्वर की वज्रसंघ भवमें जो अनुन्दरी, नामकी बहिन थी वह कुछ समय बाद उसी सुनन्दाके सुन्दरी नामकी पुत्री हुई । इस प्रकार भगवान् वृषभनाथ का समय अनेक पुत्र पुत्रियोंके साथ सुखसे व्यतीत होता था।
एक दिन भगवान् वृषभेश्वर सभाभवनमें स्वर्ण सिंहासन पर बैठे हुए थे कुछ अमरकुमार चमर ढोल रहे थे। वन्दीगण, गर्भकल्याणक जन्मकल्याण आदिकी महिमा का बखान कर रहे थे। पासमें ही देव मनुष्य विद्याधर वगैरह बैठे हुए थे। इतनेमें ब्राह्मी और सुन्दरी कन्यायें उनके पास पहुंची। कन्याओंने पिता वृषभदेव को झुक कर प्रणाम किया। वृषभदेवने उन्हें उठा कर अपनी गोदमें बैठा लिया और प्रेमसे कुशल प्रश्न पूछा। पुत्रियों की विनय शीलता देखकर वे बहुत ही प्रसन्न हुए। उसी समय उन्होंने विद्याप्रदान
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