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________________ * चौबीस तीर्थक्कर पुराण * ४६ Parmero newse - MARAL LECategadianLENDR.RARTHATTERNAGARMATHAMRODAM समुद्रके देखनेले गम्भीर हृदय पाला चश्म शरीरी पुत्र उत्पन्न होगा। वह पुत्र इस इक्ष्वाकु वंशकी कीर्ति को दीको प्रसारित करेगा और अपने अतुल्य भुज पलले भरत क्षेत्रले छहों खण्डोंका राज्य करेगा। पति देवके मुखसे स्वप्नोंका फल सुनकर परावती महादेवी बहुत ही हर्षित हुई। इसके अनन्तर व्याघ्रका जीव सुबाहु, जोकि सर्वार्थ सिद्धिनें अहनिंद्र हुआ था. वहांसे चयकर यशस्वतीके गर्भ में आया। धीरे २ शहादेवोके शरीरमें गर्भके चिन्ह प्रकट हो गये. समरन शरीर सफेद हो गया, स्तन युगल स्थूल और कृष्ण वर्ण हो गये, मध्य भाग कृप हो गया और उदर वृद्धिको प्राप्त हो गया था। उस समय उसका मन शृङ्गार चेष्टाओंसे हटकर तोर चेष्टाओंमें रमता था। वह शाणपर घिसी हुई तलवार, मुंह देखती थी, योवाओंके पीरता भरे वचन सुनती थी, धनुषकी कार नुनकर अत्यन्त जर्षित होती थी, पिंजड़ेमें बन्द किये हुए सिंहोंके बच्चोंले प्यार करती थी और शर वीरोंकी युद्ध कला देखकर अत्यन्त प्रसन्न होती थी। महादेवीकी उक्त चेष्टाओंसे स्पष्ट मालूम होता था कि उसके गर्भ में किसी विशेष पराक्रमी पुरुपने अवतार लिया है। क्रम-नामसे जव नौ महीने बीत चके तब किसी शुभ लग्नमें प्रातः कालके समय उसने एक तेजस्वी चालकको सूत किया। उस समय वह बालक प्रतापी सूर्यकी नाई और यशस्वती देवी प्राची दिशाकी नाई मालूम होती थी। वह चालक अपनी शुजाओले जमीनको छूता हुआ उत्पन्न हुआ था इस लिये निमित्त शास्त्र के जानकारोंने कहा था कि यह पुत्र सार्वभौम समस्न पृथ्वीका अधिपति अर्थात् चक्रवर्ती होगा। पुत्र रत्नकी उत्पत्तिसे जिनराज वृषभ देव बहुत ही प्रसन्न हुए थे। मरू देवी और नाभिराजके हर्णका तो पार ही नहीं रहा था। उस समय अयोध्यागें ऐसा कोई भी मानव नहीं था जिसे वृषभ देवो पुत्रकी उत्पत्ति सुनकर हर्ष न हुआ हो । सम्पूर्ण नगरी तरह तरह की पताकाओंले सजाई गई थी- राजमार्ग लुगंधित जलसे सींचे गये थे और उनपर सुगंधित फूल विखरे गये थे। प्रत्येक घरके आंगनों में रत्नचूर्णसे चौक पूरे गये थे और अबालिकाओंमें सारङ्गी तबला आदि मनोहर पाजोंके साथ संगीत चतुर पुरुषों के श्रुति लुभग गान हुए थे। राजा नाभिराजने जो दान TOTROPERHIT
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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