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________________ * चौवीस तीकरथपुराण* Pramoeoporenoraemovew w wcmmenerariVaaaaawarNIMAL पालन करने लगे। अथ श्रीमतीफे पिता बज दन्तका भी कुछ हाल सुनिये । एकदिन चक्रवर्ती राजसभामें बैठे हुये थे कि मालीने उन्हें एक कमलका फूल अर्पित किया। उस कालकी सुगन्धिसे चारों ओर भौरे मंडरा रहेथे । ज्योंही उन्होंने निमीलिन कमलको विकसानेका प्रयत्न किया त्योंही उस कमलमें रुके हुए एक मृत भौरे पर उनकी दृष्टि पड़ी वह भौरा लुगन्धिके लोभसे सायंकालके समय कमलके भीतर बैठा हुआ था कि अचानक सूर्य अस्त हो गया जिससे वह उसीमें बन्द होकर मर गया था। उसे देखते ही चक्रवर्ती सोचने लगे कि “जब यह भौंरा एक नासिका इन्द्रियके विषयमें आसक्त होकर मर गया है तब जो रात दिन पांचों इन्द्रियोंके विषयों में आसक्त हो रहे हैं वे क्या भारेकी तरह मृत्युको प्राप्त न होवेंगे? सच है-संसारमें इन्द्रियोंके विषय ही प्राणियोंको दुःखी किया करते हैं। मैंने जीवन भर विषय भोगे पर कभी सन्तुष्ट नहीं हुआ।" इत्यादि विचारकर उन्होंने जिन दीक्षा धारण करनेका दृढ़ संकल्प कर लिया। चक्रवर्तीने अपने बड़े पुत्र अमित तेजके लिये राज्य देना चाहा पर जब उसने और उसके छोटे भाईने राज्य लेना स्वीकार नहीं किया तब उन्होंने अमित तेजके पुण्डरीक नामक पुत्रके लिये जिसकी आयु उस समय सिर्फ छह माह की थी राज्य दे दिया और आप अनेक राजाओं, पुत्रों तथा पुरवासियोंके साथ दीक्षित हो गये। ___चक्रवर्ती और अमिततेजके विरहसे सभ्राज्ञी लक्ष्मीमती तथा अनुन्दरी आदिको बहुत दुःख हुआ। कहां चक्रवर्तीका विशाल राज्य और कहां छह माहका अयोध बालक पुण्डरीक अब इस राज्यकी रक्षा किस तरह होगी? इत्यादि विचार कर लक्ष्मीमतीने दामाद चनजंघके लिये एक पत्र लिखा और उसे एक पिटारेमें वन्दकर चिन्ता गति तथा मनोगति नामके विद्याधर दूतोंके द्वारा उनके पास भेज दिया। जब बजंघने पिटारा खोलकर उसमेंका पत्र पढ़ा तब उन्हें बहुत दुःख हुआ। श्रीमतीके दुःखका तो पार ही नहीं रहा । वह पिता और भाइयोंका स्मरण कर विलाप करने लगी पर राजा बज्रजंघ संसारकी परिस्थितिसे भलीभांति परिचित थे इसलिये उन्होंने किसी तरह अपना शोक दूर कर श्रीमतीको धीरज बंधाया। और मैं आता हूँ, कह कर E
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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