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*'चौबीम तर्थकर पुराण * सुगन्धित श्वासोवास ग्रहण करता था । वहां वह प्रवीचार सम्बन्धसे सर्वथा रहित था। उसका समस्त समय जिन पूजा या तत्व चर्चाओं में ही बीतता था यही अहमिन्द्र आगेके भवमें भगवान् अरनाथ होगा।
[२] वर्तमान परिचय जम्बुद्वीपके भरत क्षेत्रमें कुरुजाङ्गल देश है। उसके हस्तिनापुर नगरमें सोमवंशीय काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन राज्य करता था। उसकी स्त्रीका नाम मित्रसेना था। दोनों राज दम्पतियोंमें घना प्रेम था। तरह तरह के कौतुक करते हुये उन दोनोंका समय बहुत ही सुखसे व्यतीत होता था। जब ऊपर कहे हुए अहमिन्द्रकी आयु सिर्फ छह माहकी बाकी रह गई तबसे राजा सुदर्शनके घर पर देवोंने रत्न वर्षा करनी शुरू करदी । कुवेरने एक नवीन हस्तिनापुरकी रचना कर उसमें महाराज सुदर्शन तथा समस्त नागरिक प्रजाको ठहराया। इन्द्रकी आज्ञासे देवकुमारियां आ आकर रानी मित्रसेनाकी सेवा करने लगीं। इन सब शुभ निमित्तोंको देखकर राजा प्रजाको बहुत ही आनन्द होता था। __फाल्गुन कृष्ण तृतीयाके दिन रेवती नक्षत्रको उदय रहते हुए पिछली रातमें मित्रसेना महादेवीने सोलह स्वप्न देखे। उसी समय उक्त अहमिन्द्र जयन्त विमानसे च्युत होकर उसके गर्भमें आया। सवेरा होते ही रानीने प्राणनाथ-राजासे स्वप्नोंका फल पूछा तब उन्होंने कहा कि आज तुम्हारे गर्भमें जगद्वन्द्य किसी महापुरुषने प्रवेश किया है। नव माह बाद तुम्हारे प्रतापी पुत्र उत्पन्न होगा। इधर राजा सुदर्शन रानीको स्वप्नोंका फल सुना रहे थे उधर जय जय शब्दसे आकाशको गुनाते हुए देव लोग आ गये और भावी तीर्थङ्कर अरनाथका गर्भकल्याण उत्सव मनाने लगे। उन्होंने माता पितासुदर्शन और मित्र सेनाका बहुत ही सन्मान किया और उन्हें स्वर्गसे लाये हुये अनेक वस्त्राभूषण भेंट किये । गर्भाधानका उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने स्थान पर चले गये।
नौ माह बाद रानी मित्रसेनाने मगशिर शुक्ला चतुर्दशीके दिन पुष्प नक्ष. में मतिश्रुत और अवधिज्ञानसे विराजित तीर्थङ्कर पुत्रको उत्पन्न किया।