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(६८) ॥ पु॥ ३१ ॥ यह भगवती शतक श्रीठ में रेलाल। नवमां उद्देशा मांयहो । भ॥ पुन्य पाप तणीकरणी तया रेलाल । जाणें समदृष्टी न्यायहो ।भ ।। ।। पु ॥ ३२ ॥ करणी करि निहाणों नहीं करें रेलाल. । चोखा परिणामां समकित वन्त हो ।म। समाध जोग बरतै तेहनांरेलालं । क्षमांकरि परिशहसमंत हो ।भ ।। पु॥१३॥ पांचूंही इन्द्रियां बस कियारेलाल । गले माया कंपट रहित हो।भा। अपा. • सस्थापणंज्ञानादिक तणं रेलाल। श्रमण पण छै स. हितहो ।भ।पु ४२ ॥ हितकारी प्रबचन श्राएं तः
एं रेलाल। धर्म कथा कहे विस्तार हो ।भ॥ यां दस बोलां बंधै जीवरैरेलाल । कल्याणकारी कर्म श्रीकारहो। भ। पु । ३५ । ते कल्याणकारी कर्म पुन्य छै रेलाल।तिणरी करणीनिरबद्यजाण हो||भा ठाणा अंग दसमें ठाणे कन्धा रेलाल ते जोयकरि ज्यो पिछाण हो||भाापु ॥३६॥ .. .
भावार्थ ॥ शुभयोग वर्तनेसे पुन्योपार्जन होता है सो शुभयोग श्रीजिन आशाके माहिहें उनहीं शुभयोगोस अशुभ कर्माको निरजरा होती है
और पुन्य ज्यो शुभकर्म है घो बंधते हैं, जिस कर्त्तव्यको श्रीजिनेश्वर, • झेच श्राक्षाद उस निरमय कर्तव्य के करण जोपदेशत: निर्मल