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________________ (६६) सेवेतेहसंरेलाल । बंधै अकल्याण कारी कर्म श्राय हो ॥ भः॥ पु ॥ १६ ॥ प्राणभृत जीव सत्वनेरेलाल । बहु शन्दै च्यारूं मांहि हो॥भा त्यांरी करै अनुकम्पा दया प्राणिनरेलाल । दुःख सोग उपजावै नांहिं हो ॥ भ ।। पु ॥ २० ॥ अमूरणियां में अपिट्टणियां रेलाल । अटिप्पणिया ने अप्रतापहो ॥ भ॥ यां चौदा बोलांमें बांधै साता बेदनीरेलाल उलटा कियां असाता पापहो ॥ भ ॥ पुः ॥ २१ ॥ महा प्रारंभ महा परिग्रहिरेलाल । बलिकरै पचेन्द्री नीघात हो । भ ।। मद्य मांस तणुं भक्षण करै रेलाल । तिण पापसे नर्कमें जातहो।।म।।।२।। माया कपट गुडमाया करै रेलाल । बले नोले मूषा बाय हो ।भ ॥ कूडा तोला ने कूडा मांपा करैः रेलाल तिगा पापथी तिर्यंच थायहो।भापु॥२३॥'. प्रकृतिरो भद्रिक वनीत छै रेलाल । दयाने श्रमच्छर भाव जाण हो ।म।। तिणसें बांधै आऊषों मनुष नरेलाल । तेकरणी निरवध पिछाणहो ।भ |पु॥ ।। २४ ॥ पालै सराग पणे साधू पणों रेलाल । बले श्रावकरा व्रत बारहो ॥ भ ।। वाल तपम्गर्ने '. अकाम निरजरा रेलाल । त्यांसूं पामैं सुर अव:
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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