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चारित्र को उत्कृष्टो पर्याय श्रमन्त गुणी है। जिससे अधिक सक्षम संपराय चारित्र की जघन्य पर्याय अनन्त गुणी है, जिससे अधि क सृतम संपराय चारित्र की उत्कृष्टा पर्याय अनन्त गुणी है, जि ससे अधिक यथाज्ञात चारित्र की पर्याय अनन्त गुणी है, तात्पर सबसे जियादह यथाक्षात चारित्र निर्मला है ये चारित्र बारवें तेरवे गुणस्थान है। . . . . . . .
॥ढाल तेहिज ॥ सावध जोगरा त्याग करिने रूंधीया तिण सुं तसंबर हूवो जाण हो ॥ भ ॥ निवद्य जोग रूंध्यां संबर हूत्रै । तिगरी बुद्धिवंत करिजो पिछाणहो । भ ॥ ४६॥ निरवद्य जोग- मनवचः न काया तणां ।. ते घटिया थी संबरं थायहो । ॥भ ।। सर्वथा घटियां अजोग संबर हौ। तिणरो ब्योरो सुणोचितल्यायं हो ॥ भ ।सं।। ४७॥ . साधुतो उपवास बेलादिक तप करै । ते कर्मकाटणरे कामहो । भ.॥ जब सहचर संबर साधुरे नी. पजै । निरवद्य जोग रूंध्यां सु तामहो ॥ भ ॥
सं॥४८॥ श्रावक उपवास बेलादिक तपक: रे। ते पिण कर्म काटणरै कामहो ।भ ॥ जब बतसंबर पिण सहचर नीपजै । सावंद्य जोग र ध्यां ताम'हो । म ।। सं॥ ४६॥ श्रावक जेजे पुदगल भोगवे । ते. सावध जोग व्यापार हो ।