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________________ होगा त्यो त्यो जीव उज्वल होके चारित्र गुनकी वृद्धी करेगा, ऐसे मोहनीय कर्मको क्षय करते करते लर्व मोह कर्म क्षय होजा नसे यथाक्षात चारित्र होताहै । जिस जीवके कर्म थोडे होते हैं उसे बैराग्य भाव उत्पन्न होता है तब संसार को असार जानके प्रथम सामाइक चारित्र श्रादरता है अर्थात् पंच महाव्रत अङ्गीकार करिके भले अध्यवसायो से मोहनीय कर्म के प्रदशा कोक्षय फरता है तब येक संयम स्थानक निपजता है अनन्त प्रदेशों का क्षय होने से अनन्त गणां उज्वल चारित्र हवा इससेयेक संयम स्थानक की अनन्ति पर्याय है, इसही तरहे मोहनीय कर्म को असंख्यात बार क्षय करता है इसलिय सामाइक चारित्र के असंख्याता संयम स्थानक हैं और येक येक संयम स्थानक की अनन्ती अनन्ती पर्याय है, जघन्य सामायक चारित्र की पर्याय से उत्कृष्ट सामाय. क चारित्र की पर्याय अनन्त गुण अधिक है छटा गुणस्थान से नमा गुणस्थान लग सामायक चारित्र हे ऐसे छेदोस्थापनी चारित्र के स्थानक और पर्याय जानना, इसमें गुणस्थान सक्षम सम्परांय चारित्र है जिसके भी असंख्यातायम स्थानक श्रीर अनन्ती पर्याय है, सूक्षम सम्पराय चारित्रियाके मोहनीय कर्मके अनन्ते प्रदेश सेष रहे हुवे सर्व प्रदेश प्रातम प्रदेशों से येक दम अलग होता है तब द्वादशम गुणस्थान में थथाख्यात चारित्र प्रगट होता है, मोहनीय कर्मके सवं प्रदेशों को येक ही वक्त में क्षय किया इस लिये यथाक्षात चारित्र का येकही संयम स्थानक है और उसकी सबसे अधिक अनन्ती पर्याय है, सामाईक छेदो स्थापनीय पडिहारविशुद्ध और सूक्षन संपराय इन च्यार चारि प्रोके तो असंख्याता असंख्याता संयम स्थानक है अर्थात् इन चारित्र वाले मोहनीय कर्मक प्रदेशों को पूर्वोक्त रीति से असं. ख्याता २ वारखपाते हैं जिस से चारित्र गुण अधिकाधिक अनन्त गुणां निरमल होता है सोही अनन्ती पयाय है, सबसे थोडीती सामाइक छेदोस्थापनीय चारित्र की जघन्य पर्याय (पज्झव ) है.' जिससे अधिक पडिहार विशुद्ध चारित्रकी जघन्य पर्याय अनन्त गुणी है, जिससे अधिक पडिहारविशुद्ध चारित्र की उत्कृष्टी पयाय अनन्त गुणी है जिससे अधिक सामाइक और छहोस्थापनीय
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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