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________________ हिंसानु कारण ते थकी पण ( दुक्खं भयं पडिसंवेदेति के० ) ते जीवो दुःख श्रने भय एज वेदे अनुभवे एटले जेवू दुःख मनै घेदवू पडे तेवू दुःख सर्व जीवने वेदवू पडे एम सर्व जीवोने पोता सरखू दुक्ख देखाडीने अन्य जीवोने शिक्षानो उपदेश श्रापेछे (एवं नच्चा के०) एवं जाणीने ( सव्वेपाणा जावसत्ता के०) सर्व प्राणी सर्वभूत सर्वजीव अने सर्व सत्वने ( णहंतव्वा के०) हणवा नहीं (अभभावेयव्वा के० ) दंडादिके करी ताडवा नहीं (णपरियेतव्या के०) बलात्कारे करी दासनी पेठे परिग्रहवा नहीं एटले बलात्कारे करी चाकरनी पेठे कोई कार्यने विषे प्रेरवा नहीं (णपरितावेयव्वा के०) शारीरिक मानसी पीडांने उपजावीने परितापवा नहीं (किलविद्यामाणवा णउद्दवेयम्वा के०) किलामणा करी करी उपद्रववा नहीं तथा काया थकी रहित करवा 'नहीं ॥४८॥ हघे सुधर्म स्वामी कहेछे (सेंवमि के० ) ए वचन जेहूं कहूं छू ते पोतानी मतिये नथी कतो पण एम सर्व तीर्थकरनी श्राशाछे ते देखाडेछे (जेयतीता के० ) जे अतीतकाले तीर्थकर थया (जेयपडुप्पन्ना के० ) जेवर्तमानकाले तीर्थकर वर्तेछ (जेयागामिस्सामि के०) जे आगमिक काले थशे ते (अरिहंत के०) अरिहन्त सरकार योग्य (भगवंगा के०) ज्ञानवंत आश्चर्यादि गुणे करी संयुक्त एवा (सब्ते के० ) समस्त श्री अरिहन्त भगवंत ते (एषमाइख्खंती के० ) एम सामान्य थकी कहेछ ( एवं भासंति के० ) पम आर्यमागधीभाषायें भाषेछे (एवंपणवेंति के०) एम शिप्यने देशना आपछे ( एवंपरूपति के० ) एम सम्यक प्रकारे प्ररूपेछ के (सव्वपाणाजावसत्ता के०) सर्व प्राणीथी मा. डीने यावत् सर्व सत्वने ( णहंतव्वा के० ) हणवा नहीं दंडादिक करी ताडवा नहीं चली बलात्कारें दासनी पेठे परिग्रहवा नहीं शारीरिक मानसो पीडा उत्पन्न करीने परितापवा नहीं उपद्रववा , नहीं जीव काया थकी रहित करवा ,नहीं (एसधम्मेधुवं के०) ए धर्म प्राणांनी दया लक्षण दुर्गतिय जाता जीवने रास्त्रनार ते धर्म केवोछे तोके ध्रुव पटले निश्चल (गोनिपे के०) नित्य सदा सर्वकालछे कोई काले जेनो क्षय नथी (सासये के०) शास्वतछ. तेने ( समिच्चं के०) केवल शाने करी आलोचीन शु पालोचीने
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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