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जैनग्रन्यरत्नाकर
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डाक्टर लोगअसमर्थ हो जाते हैं, हकीम लोगजयाव दे देते हैं, और वैद्य वगले झांकते हैं । जिसे अंग्रेजीमें प्लेग, हिन्दीमें मरी, और मराठी गुजराती, मरकी कहते हैं । अनेक लोगोंका ख्याल है कि यह रोग भारतमे पहिले पहिल हुआ है, परन्तु यह उनकी भूल है। इसके सैकड़ो प्रमाण मिलते हैं, कि प्लेग अनेक वार हो चुकी है।
और उसका यही रूप था जो आज है । कविवरने इस विषयमें जो वाक्य लिखे हैं, वे ये हैं
१वम्बईके भूतपूर्व कमिश्नर 'सरजेम्स केम्वले ने 'अहमदावादगेजेरियर में कुछ दिन पहिले इस विषय सम्बन्धी अनेक उल्लेख किये हैं, जो पाटकोंके जानने योग्य है। उन्होंने लिखा है कि, "इसी । सन् १६१८ अर्थात् वि० सं० १६७५ के लगभग अहमदावादमें लेग फैल रहा था, जो कि आगरा-दिल्लीची ओरसे आया था, और जिसम्म प्रारंम ई० स० १६११ में पंजावसे निश्चित होता है । जिस समय प्लेग आगरा और दिल्लीमें कहर मचा रहा था, वहांके तत्कालीन वादशाह जहांगीर उससे डरकर अहमदाबादमें कुछ दिनोंके लिये आ रहे थे। कहते हैं कि उनके आनेके थोडे ही दिन पीछे इस छुआ. छूतके रोगने अहमदावादमें अपना डेरा आ जमाया था। सारांशअहमदाबादने आगरा-दिल्लीसे और आगरा-दिल्ली में पंजाबसे रोगका वीज आया था। उस समय प्लेगका चक्र यत्र तत्र ८ वर्षके लगभग चला था। वर्तमान प्लेगकी नाई उस समय भी उसका चूहोंस घनिष्ट सम्बन्ध पाया जाता था, अर्थात् उस समय जहाँ २ लेगका उपद्रव
होता था, चूहोंकी संख्या वृद्धि होती थी। उस समय हिन्दुस्थानमें जो । यूरोपियन रहते थे, उन्हें भी लेगमें फँसना पड़ा था। यह काले
और गोरोंके साथ नीतिज्ञ राजाकी नाई तब भी एक सा बर्ताव करता या । इस विषयमें "मि० टेरी" नामफ अन्धकारने लिखा है "ना
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