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पिताके खर्गवास होनेपर १ महीने तक पुत्रने पितृशोक मनाया ।। अशोक विस्मृत करने के लिये लोगोंने उन्हें अनेक शिक्षायें देकर, व्या
त्यों संतोषित किया । जीव इष्टजनों के वियोगमें दुःखी होते हैं, परन्तु निदान यह संसार है, मोहमायामें शीघ्र ही उसको भूल जाते हैं। बनारसी फिर जगज्जालमें लीन हुए। थोड़े दिन पीछ साहुजीका पत्र आया कि "तुम्हारे विना लेखा नहीं चुकेगा, अतः तुम्हें आगरको । आना चाहिये ।" साहुजीकी आज्ञानुसार बनारसीदासजी आगरको रवाना हुए। इस यात्रामें मुगलाईके न्याय और अत्याचारका कविवरने अपनेपर बीता हुआ वृत्तान्त लिखा है, पाठकोंक रुचिकर होगा।
में अपने शाहजीकी आमासे एक शीघ्रगामी अश्वपर मवार होके आगरेको रवाना हुआ । पहिले दिन घेसुआ नामक गांधौ । रात्रि हो जानेसे ठहरना पड़ा । संयोगसे उसी दिन आगरका है एक कोठीवाल महेश्वरी अपने ६ नौकरोंके साथ इसी त्राममें मेरे पास ही ठहर गया । और भी २-३ ब्राह्मण तथा अन्य लोगोंका संग हो गया । सव १९ मनुष्य हो गये । सब आपसमें यह राय करके कि, आगरे तक बराबर साथ चलेंगे, दूसरे दिन धेसुमासे डेरा उठाके चल पडे । कई दिन चलकर इस संघन
घाटमपुरके निकट कुर्रा नामक ग्रामकी सरायमें डेरा डाला । सब ही लोग अपने २ खाने दानेकी चिन्तामें लगे, कोई बाजार गया: कोर्ट अन्य कहीं गया । मथुरावासी ब्राह्मणों से एक दूध लेनेके लिंग अहीरके घर गया और दूसरा बाजारमें पैसे भुनाकर खाद्यसामग्री लेके डेरेसर आगया | थोडी देरमें वह सराफ जिसके यहांस विप पैसे लाया था, आ धमका और बोला कि, तू हमको धोखा देकर
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