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ei teatatutat tentar tertutukatututetatatatan tertentator tortor korte ter १५. कविवरवनारसीदासः ।
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तब बनारसी भी अवसर पाकर किसीसे विना पूछेताछे उनके साथ हो लिये । बनारसमें पहुंच कर गंगास्नान पूर्वक भगवान् पार्श्वसुॐ पार्श्वकी पूजन दशदिन तक बडे हावभावसे की । स्मरण रहे कि,
सदाशिवकी पूजन वहां भी छोड नहीं दी थी, वह नियमसे होती थी। यात्रा करके संखोली लिये हुए बड़े हर्पके साथ घर आ गये । कविवरने अपने जीवनचरित्रमें सदाशिवपूजनको उत्प्रेक्षा और आक्षेपालंकारमें इस प्रकार कहा है......
शंखरूप शिव देव, महाशंख वानारसी। ॐ दोऊ मिले अवेव, साहिब सेवक एकसे ॥ २३७ ॥
तारके कारण जैसी आजकलकी यात्रा सरल हो गई है, ऐसी उस समय नहीं थी । जो याना आज १० दिनमें पूरी हो जाती है, उस समय उसमें १ वर्ष बीत जाता था । अतः मुकीम हीरानन्द जीका संघ बहुत दिनके पीछे लौटके आया। आते २ अनेक लोग
मर गये, अनेक बीमार हो गये, और अनेक लुट गये । खरगसेअनजीको उदर रोगने घर दवाया । ज्यो त्यो बडी कठिनतासे संघके साथ अपने घर जौनपुर तक आये। जौनपुरमें संघका खरगसेनजीकी
ओरसे यथोचित आतिथ्यसत्कार किया गया, पश्चात् यहीसे संघ विखर गया, सब लोग अपने २ ग्राम नगरोंकी राह लग गये
संध फूटि चहुँदिशि गयो, आप आपको होय।
नदी नाव संजोग ज्यों, विछुर मिलै नहिं कोय २२३.. ३. खरगसेनजी घर रहकर धीरे २ स्वास्थ्य लाभ करने लगे। हाटबाजार में जाने आने लगे और पश्चात् प्रसन्नतासे रहने लगे। यात्रासे आनेके पहिले आपके एक पुत्रने जन्म लिया था, परन्तु यह दो
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