________________
kitni.kitretitutikattitutitutitutitutet.
Ptkekatrketstatutekekiter.kekssrinkunkukurkrarukokatrkatrkarkekrantrtikskuttrakisankeirkoketan
Attitttttttitutbriturthiktiststitutions
१६ कविवरवनारसीदासः। •mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. . में ऐसी अशुभ दशा भई, निकट न आवै कोइ।
सासू और विवाहिता, करहिं सेव तिय दोइ ॥१२॥
खैराबादमें एक नाई कुष्टरोगका धन्वन्तरि था । वह बनारसीकी टहल चाकरी और साथ ही औषधि करता था। उसने दो महीने में जी तोड़ परिश्रम करके हमारे चरित्रनायकके राहुग्रसित शरीरको संसारके गगनमंडलपर पुनः निर्मल प्रकाशित कर दिया । नाईको से यथोचित हान देकर स्वास्थ्यलाभ करके वनारसदासनी घरको ठौटे। परन्तु सासससुरने अपनी लडकीकी विदाई नहीं की। घर आके
आय पिताके पद गहे, मा रोई उर ठोकि। जैसी चिरी कुरीतकी, खो जुतदशा विलोकि ।। खरगसेन लजित भये, कुवचन कहे अनेक ।
रोये बहुत बनारसी, रहे चकित छिन एक ॥ १९५॥ १ दश पांच दिनके पश्चात् ; फिर पाठशालाने पढनको जाने के लगे और___के पढ़ना के आसिती, पहिली पारी चार ।।
खरगसेनजी इसी समय व्यापारके निमित्त पटनेको चले गये। चार महीने बीत जानेपर बनारसीदासजी फिर ससुरालको गये, और * मार्याको लेकर घर आ गये । अब आप गृहस्थ हो गये, इस कारण गुरुजन उपदेश देने लगे ...
गुरुजन लोग देहि उपदेश ।
आसिखवाज सुनें दरवेश ॥ बहुत पढ़ें वामन अरु माट।
वनिक पुत्र तो बैठे हाट ॥
ituttiti.irtut.kettrintutntext
u rintukatar