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kestate tatti tattatutatstats tattatute thistatutti १२४२ जैनग्रन्थरत्नाकरे
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बोलि विगार कौनसौं, हम बैठे ॥ १॥ गये विलाय भरमके बादर, परमारथपथपौनसौं । अव अंतरगति भई हमारी, परचे राधारौनसौं, हम बैठे० ॥ २ ॥ प्रघटी सुधापानकी महिमा, मन नहिं लागै बौनसौं । छिन न सुहायँ और रस फीके, रुचि साहिबके लौनसौं, हम बैठे ॥ ३ ॥ रहे अधाय पाय सुखसंपति को निकसै निज भौनसौं । सहज भाव सदगुॐ रुकी संगति, सुरस आवागौनसौं, हम बैठे० ॥ ४ ॥
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राग सारंग वृंदावनी। * जगतमें सो देवनको देव । जासु चरन परसैं इन्द्रादिक
होय मुकति स्वयमेव, जगतमें० ॥१॥ जो न छुधित न तृपित । अन मयाकुल, इन्द्रीविषय न वेव । जनम न होय जरा नहि
व्यापै, मिटी मरनकी टेव, जगतमें ॥ २ ॥ जाकै नहि विपाद नहिं विस्मय । नहिं आठों अहमेवं । राग विरोध मोह नहिं जाकै, नहिं निद्रा परसेचे, जगतमें० ॥ ३ ॥ नहिं तन रोग न श्रम नहिं चिंता, दोष अठारह भेव । मिटे सहज जाके ता-प्रभुकी, करत 'वनारसि सेव, जगतमें० ॥ ४ ॥
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पुनः राग सारंग वृंदावनी। * विराजै रामायण घटमाहिं । मरमी होय मरम सो जाने, * १ खानुभवरूपी राधारमणसे. १ वमन-छदिः ३ अष्टप्रमाद. १ ४ पसेव-पसीना.
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