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बनारसीविलासः
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न वीजनिकी मर्यादा पाइए । याही भांति अनंतताको स्वरूप जाननौ । ता अनंतताके स्वरूपको केवलज्ञानी पुरुष मी अनन्तही देखे जाणै कहै-अनन्तको ओर अंत है ही नाही जो ज्ञानविपै भासै । तातें अनंतता अनंतहीरूप प्रति ३ भास, या मांति आगम अध्यातमकी अनंतता जाननी. तामैं विशेष इतनौ जु अध्यातमको स्वरूप अनंत आगमको स्वरूप अनंतानंतरूप, यथापना प्रधानकरि अध्यात्म एक द्रव्याश्रित । आगम अनंतानन्त पुद्गलद्रव्याश्रित । इन दुईको स्वरूप सर्वथा प्रकार तौ केवलगोचर, अंशमात्र मतिश्रुतज्ञानग्राह्य
ताः सर्वथाप्रकार आगमी अध्यात्मी तो केवली, अंशमात्र । । मतिश्रुतज्ञानी, ज्ञातादेशमात्र अवधिज्ञानी मनःपर्यय ज्ञानी,
ए तीनों यथावस्थित ज्ञानप्रमाण न्यूनाधिकरूप जानने । मिथ्यादृष्टी जीव न आगमी न अध्यात्मी है । काहेरौं यातें । जु कथन मात्र तौ ग्रंथपाठके बलकरि आगम अध्यातमको स्वरूप उपदेशमात्र कहै परन्तु आगम अध्यातमको स्वरूप सम्यक् प्रकार जानैं नहीं। ता मूढ जीव न आगमी न अध्यात्मी, निर्वेदकत्वात् ।
अब मूढ तथा ज्ञानी जीवको विशेपपणौ और भी सुनो, ३ ज्ञाता तो मोक्षमार्ग साथि जाने. मूढ मोक्षमार्ग न में साधि जानै काहे-या सुनो-मूढ जीव आगमपद्धतिको ।
व्यवहार कहै अध्यात्मपद्धतिको निश्चय कहै तात आगम
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