________________
tattost.ttattattutikatturitkuttersthitutntrtation २१० जैनग्रन्थरत्नाकरे
विन परिचय जो वस्तु विचारै ध्यान अग्नि विनतन परजारै ।। ज्ञानमगन विन रहै अबोला। कह गोरख सो बाला भोला ||६ सुनरे बाचा चुनियाँ मुनियाँ । उलट वेधसों उलटी दुनियां । सतगुरु कहै सहजका धंधा । वाद विवाद कर सो अंधा ॥७॥
इति गोरखनाथके वचन.
Arketiktatuttotket.ttituttituttitaskuttatokuteket-tickettitutiktikotatokutekakakakikatt
अथ वैद्य आदिके भेद.
वैद्यलक्षण. २ कर्म रोगकी प्रकृती पावै । यथायोग्य औषधि फरमावै ।। * उदय नाड़िकाकी गति जानै । सो सुवैद्य मेरे मन मान ॥१॥
ज्योतिपीलक्षण, नवरस रूप गिरह पहिचाने । बारह राशि भावना मानै ॥ से सहन संक्रमण साधै जोई । ज्योतिपराय ज्योतिषी सोई ॥२॥
__ वैष्णवलक्षणदोहा। तिलक तोष माला विरति, मति मुद्रा श्रुति छाप ।। ___इन लक्षणसों वैषणव , समुझे हरि परताप ॥ ३ ॥
जो हरि घटमें हरि लखै, हरि बाना हरि बोइ। न हरि छिन हरि सुमरन करे, विमल वैषणव सोइ ॥४
। मुसलमानलक्षण. - जो मन मूसै आफ्नो, साहिबके रुख होय । १. ज्ञान मुसल्ला गह टिकै, मुसलमान है,सोय ॥ ५ ॥
भLttitutkukuttrt.ttitutttt.tititiket....Akakkukkakuttituttitukuttituttiti