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___ बनारसीविलासः २०९ । ब्रह्मचर्येकी बाड़ि नव, दश मुनिधर्मविचार ।
ग्यारह प्रतिमा श्रावकी, बारह भावन सार ॥ २० ॥ तेरह थानक जीव के, चौदह गुण ठानाइ।
पन्द्रह जोग शरीरके, सोलह भेद कहाइ ॥ २१ ॥ सत्रह विधि संयम सही, जीव समास उनीस ।। दोष अठारह जान सव, पुगलके गुण वीस ॥ २२ ॥
इति प्रस्ताविक फुटकर कविता।
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अथ गोरखनाथके वचन
चौपाई। जो भग देख भामिनी मानै । लिङ्ग देख जो पुरुष प्रमाने ॥ जो विन चिह नपुंसक जोबा । कह गोरख तीनों घर खोवा ॥१॥ जो घर त्याग कहावे जोगी । घरवासीको कहै जु भोगी। अन्तरमाब न परखै जोई । गोरख बोले मूरख सोई ॥ २॥ ॐ पढ़ ग्रन्थहिं जो ज्ञान बखाने । पवन साध परमारथ मान ।। ॐ परम तत्त्वके होहिं न मरमी १ कह गोरख सो महाअधर्मी ॥३॥ माया जोर कहै मैं ठाकर । माया गये कहावै चाकर। माया त्याग होय जो दानी ! कह गोरख तीनों अज्ञानी || कोमल पिंड कहावै चेला' । कठिन पिंडसों ठेला पेला । ॐ जूना पिंड कहावै बूढा । कह गोरख ए तीनों मूढा ॥ ५॥
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