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बनारसीविलासः
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तोरे हिये डाह यों आवै, हौं कुलीन वह चेरी । , कहै सखी सुन दीनदयाली; यहै हियाली तेरी ॥९॥
दोहा. हिय आंगनमें प्रेम तरु, सुरति डार गुणपात । मगनरूप है लहलहै, विना द्वन्ददुखवात ॥ १० ॥ भरमभाव ग्रीषम भयो, सरस भूमि चितमाहिं । देश दशा इक सम भई, यहै सौतघर छाहिं ॥ ११ ॥
इति पहेली. अथ प्रश्नोत्तरदोहा लिख्यते. प्रश्न-कौन वस्तु वपु माहिं है, कहाँ आवै कहाँ जाय ।
ज्ञानप्रकाश कहा लखै, कौन ठौर ठहराय ॥ १॥ उत्तर-चिदानंद वपुमाहिं है, मममहिं आवै जाय।
ज्ञान प्रकट आपा लखै, आपमाहिं ठहराय ॥२॥ प्रश्न-जाको खोजत जगतजन, कर कर नानामेप।
ताहि बतावहु, है कहा जाको नाम अलेप ॥ ३॥ उत्तर-जग शोधत कछु औरको, वह तो और न होय ।
वह अलेख निरमेष मुनि, खोजन हारा सोय ॥ ४॥ प्रश्न-उपनै विनसै थिररहै, वह अविनाशी नाम । ___भेदी तुम भारी मला!, मोहि बतावह ठाम ॥ ५ ॥ उत्तर-उपजै विनसै रूप जड़, वह चिद्रूप अखंड । ___जोग जुगति जगमें लसै, वसै पिण्ड ब्रहमंड ॥६॥
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