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Pt.tortuttitutstet.t.tattatutatest tettint.ti ११८२ जैनग्रन्थरताकरे
__wor r.. rmer mimm . .ur चन्दन-तप्तवस्तु शीतल कर, चन्दन शीतल आप। ___चन्दनसों जिन पूजतें, मिटै मोहसंताप ॥३॥ पुष्प-पुष्य चापधर पुप्पशर, धारै मनमथ वीर। - यातें पूजा पुष्पकी, हरे मदनशरपीर ॥ ४ ॥ अक्षत-तन्दुल धवल पवित्र अति, नाम सु अक्षत तास ।
अक्षतस जिन पूजते, अक्षय गुणपरकास ॥ ५॥ नैवेद्य-परम अन्न नैवेद्य विधि, भुधाहरण तन पोय।।
जिनपूजत नैवेद्यसों, मिटहिं क्षुधादिक दोष ॥ ६ ॥ दीपक-आपा पर देख सकल, निशिमें दीपक होत।
दीपकसों जिन पूजतें, निमरीज्ञानउद्योत ॥ ७ ॥ धूप-पावक दहै सुगंधिको, धूप कहावै सोय ।
खेवत धूप जिनेशको, कर्म दहन छल होय ॥ ८॥ फल-जो जैसी करनी करै, सो तैसा फल लेय।
फल पूजा जिनदेवकी, निश्चय शिवफल देय ॥९॥ * अर्घ-यह जिन पूजा अष्टविधि, कीजे कर शुचि अंग। ___ प्रतिपूजा जलधारसों, दीजे अर्थ अभंग ॥ १० ॥
इति अष्टप्रकार जिनपूजन. अथ दशदानविधान लिख्यते. गो सुवर्ण दासी भवन, गज तुरंग परधान ।
कुलकरुन तिल भूमि रथ, ये पुनीत दशदान ॥१॥ । १ धनुष. २ जो कभी क्षय न हो.
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