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44. IMANJUGLALAMALA
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जैनग्रन्थरनाकरे
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अघर दसन ओंठ रसना मसूदा ताल,
घंटिका चिबुक कंठ कंथा उर भौन है ।। कांख कटि भुजा कर नाभि कुच पीठ पेट,
अंगुली हथेली नख जंघाथल मौन हैं। नितम्ब चरण रोम एते नाम अंगनके, तामें तू विचार नर तेरा नाम कौन है ॥९॥
दोहा। नाम रूप नहिं जीवको, नहिं पुद्गलको पिंड ।
नहिं स्वभाव संजोगको, प्रगट भरमको भिंड ॥ १० ॥ ___ यह सुनामनिर्णयकथा, कही सुगुरु संछेप । जे समुझहिं जे सरदहें, ते नीरस निरलेप ॥ ११ ॥
इति श्रीनामनिर्णयविधान.
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___ अथ नवरत्नकवित्त लिख्यते. धन्वन्तरि छपणक अमेर, घटसर्पर वैताले । वररुचि शंकै बहमिह (र), कालिदास नव लाल ॥ १॥ विमलचित्त जाचक शिथिल, मूढ़ तपस्वी प्रात । कृपणंबुद्धि तियनरपती, ज्ञानवंत नव वात ॥ २ ॥
छप्पय। विमल चित्तकर मित्त, शत्रु छलबल वश किब्जय । प्रभु सेवा वश करिय, लोभवन्तहिं धन दिजय ॥
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