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___वनारसीविलासः १७७ बार वार कहैं मोह भागवंत धनवंत,
मेरा नाव जगतमें सदाकाल रहेगा। याही ममतासों गहि आयो है अनंत नाम, ___ आगे योनियोनिमें अनंत नाम गहेगा ॥ ५ ॥
दोहा। वोल उठे चित चौंकि नर, सुनत नामकी हांक । वहै शब्द सतगुरु कहें, है भ्रमकूप धमांक ॥ ६ ॥
कवित्त। जगतमें एक एक जनके अनेक नाम, ___ एक एक नाम देखिये अनेक जनमें । वा जनम और या जनम और आगे और,
फिरता रहै पै याकी थिरता न तनमें ।। कोई कलपना कर जोई नाम धरै जाको,
सोई जीव सोई नाम मानें तिहूं पनमें । ऐसो विरतंत लख संतसो सुगुरु कहै, तेरो नाम भ्रम तू विचार देख मनमें ॥ ७ ॥
दोहा. नाम अनेक समीप तुव, अंग अंग सब ठौर। , जासों तू अपनो कहै, सो भ्रमरूपी और ॥ ८ ॥
कवित्त।
केश शीस भाल मोह वरुणी पलक नैन,
गोलक कपोल गंड नासा मुख श्रौन है।