________________
Dftetatistatutokatariatantritakistratatatatatta
१६८ जैनग्रन्थरत्नाकरे -
AAAAAAAPAN
kutt-ttitut.kottttttitutetitikakakakakakakkattttttttttttttika
घट आवश्य कर्म नित करें। त्रिविधि कर्मममता परिहरे॥ विपुल करम साधे समकिती । परम सुगुरु सामानिक जती१० पंच सुपद कीलइ चिंतौन । दुरित हरन दुख दारिद दौन ॥ यह जप मुख्य और जप गौन । इस गुण महिमा वरण कौन ११
दोहा।। महामंत्र ये पंचपद, आराधै जो कोय। . कहत वनारसिदास पद, उलट सदाशिव होय ॥१२॥
, इति श्रीपंचपद विधान. ___ अथ सुमतिके देव्यष्टोत्तरशतनाम.
नमौ सिद्धिसाधक पुरुष, नमौ आतमाराम । वरणों देवी सुमतिके, अष्टोत्तरशत नाम ॥ १ ॥
रोडक छन्द । सुमति सबुद्धि सुधी सुबोधनिधिसुता पुनीता । शशिवदनी सेमुपी शिवमती धिपणा सीता ।। सिद्धा संजमवती स्यादवादिनी विनीता । निरदोषा नीरजा निर्मला जगत अतीता ॥
शीलवती शोभावती, शुचिधर्मा रुचिरीति । . शिवा सुभद्रा शंकरी, मेधा दृढ़परतीति ॥ २॥ बह्माणी ब्रह्मजा ब्रह्मरति, ब्रह्मअधीता। पदमा पदमावती वीतरागा गुणगीता ॥
TMEMENT
ht.kettitutitut.ttitutiktet.ititittitut..ki.kkxxxht
t
ttitutkukkut.tititis
A