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१६६ जैनग्रन्थरत्नाकरे पिय शंकर मैं देवि भवानि । पिय जिनवर मैं केवलवानि ॥
मेरा० ... ... ॥ २३ ॥ पिय भोगी मैं भुक्तिविशेष । पिय जोगी मैं मुद्रा भेष ॥
मेरा० ... ... ॥ २४ ॥ पिय मो रसिया मैं रसरीति । पिय व्योहारिया मैं परतीति ।।
मेरा० ... .... ॥ २५॥ जहां पिय साधक तहाँ मैं सिद्ध । जहां पिय ठाकुर तहाँ मैं रिद्धा
मेरा० .... .... ॥ २६ ॥ जहां पिय राजा तहाँ मैं नीति । जहँ पिय जोद्धा तहाँ मैं जीति
मेरा० ... ... ॥ २७ ॥ पिय गुणग्राहक मैं गुणपांति । पिय बहुनायक मैं बहुभांति ॥
मेरा० ... .... ॥२८॥ | जहँ पिय तहँ मैं पियके संग । ज्यों शशि हरिमें ज्योति अभंग ।
___ मेरा० .... .... ॥ २९ ॥ पिय सुमिरन पियको गुणगान । यह परमारथपंथ निदान ॥
मेरा० ... .... ॥ ३०॥ * कहइ व्यवहार बनारसिनाव, चेतन सुमति सटी इकठाँव ॥
मेरा० ... ... ॥३१॥ ' इति चेतनसुमतिगीत.
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