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१६४ जैनग्रन्थरत्नाकरे * मै विरहिन पियके आधीन। यो तलफों ज्यों जल बिन मीन ।
___ मेरा मनका प्यारा जो मिलै, मेरा० ॥३॥ बाहिर देखू तो पिय दूर । घट देखे घटमें भर पूर ॥
मेरा० .... ॥ ४॥ घटमहि गुप्त रहै निरधार । वचनअगोचर मनके पार ॥
मेरा० .... ..... ॥५॥ अलख अमूरति वर्णन कोय । कवधों पियको दर्शन होय ॥
मेरा० .... .. ॥६॥ सुगम लुपंथ निकट है ठौर। अंतर आड विरहकी दौर
मेरा० .... .... ॥७॥ जउ देखो पियकी उनहार । तन मन सर्वस डारों बार ॥
मेरा० ... ... ॥ ८॥ होहुं मगन मैं दरशन पाय । ज्यों दरियामें बूंद समाय ॥
. मेरा० ..... ....: ॥ ९॥ - पियको मिलों अपनपो खोय । ओला गल पाणी ज्यों होय ॥ __ मेरा० ..... .... |॥ १० ॥ मैं जग ढूंढ फिरी सब ठोर । पियके पटतर रूप न ओर ॥
.. मेरा० ... ..... ॥ ११ ॥ पिय जगनायक पिय जगसार । पियकी महिमा अगम अपारा। . . . मेरा० ... ... ॥ १२ ॥
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