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さっち~さっさった、ちっさいっおっはっはっはっはっはっはっは、大・大・大・大太った太った、、、はっはっはっはっはっはっはっはっはっはっはっはっは、大・大・大・大・大・大・大好
बनारसीविलासः १२३४ पंच शरीर बंधसंघात । अंग उपंग अठारह बात ॥ छह संहनन छहों संठान । वर्णादिक गुन वीस यस्खान ||४|| थिर उदोत आतप निरमान । अधिर अगुल्लघु अशुभ विधान साधारण प्रतेक उपधात । शुभ परघात लबासट बात ॥५०॥ जीव विपाक अठत्तर गनी । द्विविधि गोत्र द्वयविधि वेदनी ॥ सर्वघात अरु देशविघात । संतालीस प्रकृति बिल्यात ॥११॥ तीर्थकर वादर उम्वास । सूक्षम परजापत परकास || ॐ अपरजापति मुस्वर गेय । दुस्वर अनादेय आदेय ॥ ५२ ॥ जस अपजस बस थावर वान । दुर्भन शुभग चाल द्वयजान इन्द्री जाति पंचविधि गही । गति चारों एती सब फही॥५३॥
दोहा। जीवविपाकीकी कही, प्रकृति अठत्तर टौर ॥ क्षेत्रविपाकी अब कहों, भवविपाकिनी और ॥ ५ ॥ आनुपूरची चार विधि, क्षेत्रविपाकी जान । चार आयुबलकी प्रकृति, मविपाकिया वान ॥ ५५॥ घाति अघाती त्रिविधि कहे, पुण्य पाप द्वय चार । बंध उदय दोऊ कहे, वरने चार विपाक ।। ५६ ॥ अब इन आठों करमकी, थिति जयन्य उतकृष्ट । कही बात संक्षेपसों, सुनों कान दे इष्ट ॥ ५७ ॥
चौपाई। ज्ञानावरणीकी थिति दीस । कोडाकोडीसागरतीस ॥ - यह उत्कृष्टदशा परवान । एकमुहूर्त जघन्य बखान ॥ ५८ ॥
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