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बनारसीविलासः mmmmmmmer.rammeromemmmmmmmmmm फटिक पाषाण ताहि मोतीकर मान कोऊ,
धुंधची रकत कहा रतन समान है। हंस वक्र सेत इहां सतको न हेत कमू,
रोरी पीरी भई कहा कंचनके वान है ॥ भेय भगवान के समान को आन भयो,
मुद्राको मंडान कहा मोक्षको उथान है। वानारसीदास ज्ञाता ज्ञानमें विचार देखो,
काय जोग कैसो होउ गुण परधान है ॥ ११ ॥ वेदपाठवाले ब्रह्म कहें पै विचार विना;
शिव कोई भिन्न जान शेव गुणगावहीं।। जैनी पर जतन जतन निजमिन्न जान,
वानारसी कहै चारवाक धुंधघावहीं ॥ बौद्ध कहै बुद्ध रूप काहू एक देशवसै,
न्यायके करनहार करय वतावहीं। छहों दरशनमाहिं छतो आहि छिपि रहो,
छूट न मिथ्यात तातै प्रगट न पावही ॥ ४२ ॥ भेषधर कोटिक नट्यो है लखचौरासीमें,
विना गुल्ज्ञान वरत न विवसाक्में । गुरु भगवान तूही भगवानभ्रान्ति (दै,
प्रान्तिसे सुगुरुभाष जैसे खीर तावमें ॥
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