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बनारसीविलासः
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थिर थंभ उपल विपुल ज्योति सरतीर,
सत्ता आये आपनी न कोऊ काके दलको । भासै प्रतिबिम्ब अम्बु वायुसों अनेक फैन, __ धूनतो सो दीख पैन धूजे थंम थलको ।
जाकी दृष्टि पुग्गललों चेतन न भिन्न चिंते, ___ आचरण देखे सरधान न विमलको । वानारसीदास ज्ञान आतम मुथिर गुण,
डोलै परजाय सो विकार कर्मजलको ॥ ३६॥ द्रव्ययकी दोउनकी सरहद्द देहमात्र, __ भावथकी लोकपरिमाण वाकी इधिना । भाव सरहद्द याकी अलोकतें अधिकाई,
ये तो शुभ कालकारी बातें कछू सिधि ना ॥ याके तो अभेद ऋद्धि अमल अखंड पूर,
वाके सेना परदल कष्ट निज रिधि ना। वानारसीदास दोट मीढि देखी दुनियांमें, __ एक दिसि तेरी विधि एक दिसि विधिना ॥३७॥ धर्मदेव नरको वचन जैसो गिरिराज,
मिथ्याती वचन शुद्धारथको परंतरो। पारस पाषाण जैसे जाति एक तो भेद,
मूरख दरश जैसे दरश महतरो॥
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१ महन्तको.
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