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- बनारसीविलासः
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छत्रधार बैठो घने लोगनकी भीरभार, ___ दीखत स्वरूप सुसनेहिनीसी नारी है। सेना चारि साजिके बिराने देश दोही फेरी,
फेरसार करें मानो चौपर पसारी है ॥ कहत वनारसी बजाय घाँसा वारवार, ___ रागरस राच्यो दिन चारहीकी बारी है। खुल्यो ना खजानो न खजानचीको खोजपायो,
राज खसि जायगो खजाने विन गब्बारी है ।। २६॥ जागो राय चेतन सहज दल जुरि आये,
मुरे कर्मरिपुभाव मनमें उमाहबी। सरहद भई याकी लोकालोक परिमाण,
इन्द्रचन्द्र चितवत चोपकर चाहवी ।। वानारसीदासज्ञाता ज्ञान सेना बनि आई, __आदि छतें अन्त विन ऐसी ही निवाबी । खजानची शुभध्यान ज्ञानको खजानो पूरो,
सूरो आप साहिव मुथिर ऐसी साहिबी ॥ २७ ॥ झाग उठे वामें यामें क्रोधफेनं फैलि रहे,
त्रिवलतरंगरंग दूईनमें आवना । वामें तृणकाठ धनधान्यपरिग्रह यामे,
वामें मलपंक याहि बंधद्रोह भावना ॥
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