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tatastst.titut.tistat iststatutetituttiatristi बनारसीविलासः
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एक मृतपिण्ड जैसें जलके संयोग छते.
भाजन विशेष कोट क्षणकम खेद है। तैसें कर्मनीरचिदानन्दकी प्रणति दीखे, __ नरनारी नपुंसक त्रिविध सुवेद है ॥ वानारसीदास अब वाको धूप याको तप,
छूटत संयोग ये उपाधिनको छेद है। पुमालके परचै विशेष जीव भेद भये,
पुग्गल प्रसंग विना आतम अभेद है ॥ १६॥ ये ही ज्ञान सबद सुनत सुर ताहि सुन,
पटरस स्वाद माने तू तो ताहि मान रे।। पिंड विरहंडकी खबर खोजै ताहि खोज, __परगुण निज गुण जानै ताहि जान रे ।। विषय कपायके विलास मंडै ताहि छंड,
अमल अखंड ऋद्धि आने ताहि आन रे। बानारसीदास ज्ञाता होय सोई जानै यह,
मेरे मीत ऐसी रीत चित्त सुधिं ठान रे ॥ १७ ॥ उद्यम करत नर स्वारथके काज सब,
स्वारथके उद्यमको है रह्यो बहर सो। स्वारथको भजै निरस्वास्थको तज रखो,
शहरको वन जाने वनको शहर सो॥ १'यूढत' ऐसा भी पार है.
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