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________________ बनारसीविलासः tntrt.k.kutskuttrketaketakekat.krkutek-kuteketizettitutet-trket-trikkurt.ttakrtikti सरक्रोधाद्यारीन्दलय कलय प्राणिपु दयां जिनो सिद्धान्तं शृणु वृणु जवान्मुक्तिकम हरिगीता छन्द। जो करै साथ त्रिकाल सुमरण, जास जगयश विस्तर । जो सुन परमानहिं सुरुचिसों, नीत मारग पग धेरै ॥ जो निरख दीन दया प्रभु, कामक्रोधादिक हर। जो सुधन सप्त सुखेत खरचै, ताहि शिवसंपति धेरै ।। २४ ॥ __ भार्दूलविक्रीडित। कृत्वाईत्पदपूजनं यतिजनं नत्वा विदित्वागमं हित्वा सङ्गमधर्मकर्मश्रियां पात्रेषु इत्या धनम् । गत्वा पद्धतिमुत्तमकमजुषां जित्वान्तरारिवलं स्मृत्वा पञ्चनमस्क्रियां कुरु करकोडस्थमिष्टं सुखम् ॥ वस्तु सन्द। देव पुहिं देव पूजहिं, रचहि गुरु सेव । परमागमरुचि धरहि, तजहि दुष्टसंगत ततक्षण । गुणि संगति आदरहि, करहिं त्याग दुर्भन्न भक्षण ॥ देहिं सुपात्रहिं दान नित, अपें पंचनवकार । ये करनी जे आचरहि, ते पावै भवपार ।। ९५ ॥ हारिणी। * प्रसरति यथा कीर्तिर्दिक्षु क्षपाकरसोदरा* भ्युदयजननी याति स्फीतिं यथा गुणसन्ततिः । कलयति प्रथा वृद्धि धर्मः कुकर्महतिक्षमः र कुशलसुलभे न्याय्ये कार्य तथा पधि वर्तनम् ॥ ९६ ॥ Httitutet.ttetst.titratrkuttTitert.ttattatut.krt.it.X-3-t..1-tantrit.ttik
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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