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जैनग्रन्थरत्नाकरे
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ए करनी सव निफल, होय विन भावना । ज्यों तुप वोए हाथ, कछू नहिं आवना ॥ ८८ ॥
वैरागाधिकार ।
हारिणी। यदशुभरज-पाथो हप्तेन्द्रियद्विरदाडुशं
कुशलकुसुमोद्यानं माद्यन्मनःकपिङ्गला। विरतिरमणीलीलावेश्म स्मरज्वरभेपर्ज शिवपथरथस्तद्वैराग्यं विमृश्य भवामयः ॥ ८९ ।।
घनाक्षरी। अशुभता धूर हरवेको नीर पूर सम,
विमल विरत कुलवधूको सुहाग है। उदित मदन जुर नाशवेकों जुरांकुश, ___ अक्षगज थमनको अंकुशको दाग है ।। चंचल कुमन कपि रोकवेको लोहफन्द,
कुशल कुसुम उपनायवेको बाग है। सूधा मोक्षमारग चलायवेको नामी रथ, ऐसो हितकारी भयभंजन विराग है ।। ८९ ॥
वसन्ततिलका। चण्डानिलः स्फुरितमन्दचयं दवार्चि
वृक्षवजं तिमिरमण्डलमयिम्बम् । वनं महीध्रनिवहं नयते यथान्तं
वैराग्यमेकमपि कर्म तथा समग्रम् ॥ ९ ॥
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