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htstatute tattituttitutt.ttitutituttitutetory १५६ बैनग्रन्थरत्नाकरे
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दारियन तमीक्षते न भजते दौर्भाग्यमालम्बते
नाकीर्तिने पराभवोऽभिलपते न व्याधिरास्कन्दति । में दैन्यं नाद्रियते दुनोति न दरः क्लिन्नन्ति नैवापदः । पाने यो वितरत्यनर्थदलनं दानं निदानं श्रियाम् ॥७॥
पदपद। सो दरिद्र दल मलहि; ताहि दुर्भाग न गंजहि । सो न लहै अपमान; सु तो विपदा भयभंजहि ॥ तिहि न कोइ दुख देहि, तासु तन व्याधि न बद्दइ । ताहि कुयश परहरहि, सुमुख दीनता न कडुइ ॥ । सो लहहि उच्चपदजगत महँ, अघ अनस्थ नासहि सरव । कहै कुंवरपाल सो धन्य नर, जो सुखेत बोवै दरव ॥७॥ लक्ष्मीः कामयते मतिर्मुगयते कीर्तिस्तमालोकते
प्रीतिश्चुम्वति सेवते सुभगता नीरोगतालिङ्गति । श्रेयःसंहतिरभ्युपैति घृणुते स्वर्गोपभोगस्थितिमुक्तिर्वाञ्छति यः प्रयच्छति पुमान्पुण्यार्थमथै निजम्॥
घनाक्षरी। ताहिको सुबुद्धि धरै रमा ताकी चाह कर,
चंदन सरूप हो सुयश ताहि चरचे । सहज सुहाग पावै सुरग समीप आवै,
बार बार मुकति रमनि ताहि अरचै ॥ वाहिके शरीरको अलिंगति अरोगताई, मंगल करै मिताई प्रीत करै परचै ।
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