________________
Hotukutkukkukukt-tituttitutet.kekuttrkot.kikekutekekuttektak.int-kuttitutet-titutet-t.ki
____बनारसीविलासः ४१ wwwwwmmmmmmmmmmmm.wwwmn .vomwwwr. ___ यश्च व्याप्तं वहति वधधीधूम्यया क्रोधदावं तं मानादि परिहर दुरारोहमौचित्यवृत्तेः ॥ ४९ ॥
(मात्रा ३१) सवैया। जाते निकस विपति सरिता सब जगमें फैल रही चहुँ ओर । जाके ढिग गुणग्राम नाम नहिं, माया कुमतिगुफा अति घोर जहबधबुद्धि घूम रेखा सम; उदित कोप दावानल जोर। सो अभिमान पहार पटंतर तजत ताहि सर्वज्ञकिशोर ॥ १९॥
शिखरिणी। शमालानं भञ्जन्धिमलमतिनाडी विषय__किरन्दुर्वाक्पांशुत्करमगणयन्नागमसृणिम् । भ्रमन्ना स्वैरं विनयवनवीथीं विदलयन् जनः कं नानथै जनयति मदान्धो द्विप इव ॥५॥
रोडक छन्द ! भंजहिं उपशम थंमा सुमति जंजीर विहंडहिं । कुवचन रज संग्रहहिं; विनयवनपंकति खंडहिं ।। जगम फिरहिं स्वछन्दः वेद अंकुश नहिं मानहिं । गज ज्यों नर मदअन्ध; सहज सव अनरथ ठानहिं ।।५०॥
शार्दूलविक्रीवित । औचित्याचरणं विलुम्पति पयोवाहं नमस्वानिव __ प्रध्वंसं विनयं नयत्यहिरिव प्राणस्पृशां जीवितम् । कीति कैरविणी मतगज इव प्रोन्मूलयत्यजसा
मानो नीच इवोपकारनिकरं हन्ति त्रिवर्ग नृणाम् ५१/
Stink.intotok-krt.it-tit-t.ttitutnkit-krt.k.kuttttttakukutst.tattitutt-tritikatnt.tt
JYAVaranoyarr
- - -
+
+
+
+
Tyyyarayay ++
+ +
m