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बनारसीविलासः
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पहपद। गुणनिवास विश्वास बास; दारिददुःखखंडन । देवअराधन योग; मुकतिमारग मुखमंडन ॥ सुयशकेलि आराम; धाम सज्जन मनरंजन । नागबाधवशकरन; नीर पावक भयमंजन ॥ महिमा निधान सम्पतिसदन; मंगल मीत पुनीत मग । सुखरासि बनारसि दास भन; सत्यवचन जयवंत जग २९ ।
शिखरिणी। यशो यस्माद्भस्मीभवति वनवहेरिव वनं
निदानां दु:खानां यदवनिलहाणां जलमिव । न यत्र स्थाच्छायातप इव तपासंयमकथा कथंचित्तन्मिथ्यावचनमभिधत्ते न मतिमान् ॥३०॥
३१ मात्रा सवैया छन्द। जो भस्मंत करै निज कीरति; ज्यों वनअग्नि दहै वन सोय।। जाके सग अनेक दुख उपजत; वटै वृक्ष ज्यों सींचत तोय ॥ जामै घरम कथा नहिं सुनियत;ज्यों रवि वीच छोहि नहिं होय।। सोमिथ्यात्व वचन वानारसि; गहत न ताहि विचक्षण कोय ३०
वंशस्थविलम् । असत्यमप्रत्ययमूलकारणं कुचासनासद्म समृद्धिवारणम्। विपन्निदानं परवचनोर्जितं कृतापराधं कृतिभिर्विवर्जितम्
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