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श्री अथ जिनसहस्रनाम.
दोहा.
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परमदेव परनामकर, गुरुको करहुं प्रणाम । बुधिवल वरणों ब्रह्मके, सहसमठोचर नाम ॥ १॥ केवल पदमहिमा कहाँ, कहाँ सिद्ध गुनगान ।। भापा प्राकृत संस्कृत, त्रिविधि शब्द परमान ॥२॥ एकारथवाची शबद, अरु द्विरुक्ति को होय ।। नाम कथनके कवितमें, दोष न लागे कोय ॥ ३ ॥
चौपाई १५ मात्रा. प्रथमोंकाररूप ईशान । करुणासागर कृपानिधान ॥ त्रिभुवननाथ ईश गुणवृन्द्र । गिरातीत गुणमूल अनन्द ॥१॥
गुणी गुप्त गुणवाहक बली । जगतदिवाकर कौतूहली ।। ॐ क्रमवर्ती करुणामय क्षमी । दशावतारी दीरथ दमी ॥ २ ॥ * अलख अमूरति अरस अखेद । अचल अवाधित अमर अवेद
परम परमगुरु परमानन्द । अन्तरजामी आनंदकन्द ॥ ३ ॥ प्राणनाथ पावन अमलान । शील सदन निर्मल परमान ॥ तत्त्वरूप तपरूप अमेय । दयाकेतु अविचल आदेव || १ || शीलसिन्धु निरुपम निर्वाण । अविनाशी अस्पर्श अमान ॥ अमल अनादि अदीन अछोम । अनातक अज अगम अलोम||५||
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