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चैनप्रस्थरत्नाकरे १०९।
उदै वल जोर यहै स्वासको शवद घोर, . विषय सुख काजकी दौर यह सपना ॥ ऐसी मूढ दशामें मगन रहै तिहंकाल, धावै भ्रमजालमें न पावै रूप अपना ।
काजविना न करैजिय उद्यम, लाजविना रन माहिं नौ।। डीलचिना न सधै परमारथ, शीलबिना सतसौं न अरु । नेमविना न लहै निहचैपद, प्रेमविना रस रीति न झै ।। ध्यानविना न थम मनकी गति, शानविना शिवपंथ व सूझै
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रूपकी न झाँक हिये करमको डाँफ पिये, ज्ञान दवि रहयो मिरगीक जैसे धनमें । लोचनको ढाकसों न माने सदगुरु हाँक, डोलै पराधीन मूढ राके तिहूंपनमें 4 टॉक इक मांसकी डलीसी तामें तीन फाँके, तीविको सो आँक लिखि राख्यो काह तनमें । वासों कहै 'नाँक ताके राखिवेको करें काँक, लॉकसो खरग वांधि धाक धरे मनमें ॥
१ झलक । २ चन्द्रमा । ३ रंक (दोन) । ४ टंक (परिमाणविशेष)। ५ छकड़े। ६ अंक (संख्या)। ५ लंक (कमर)। ८ कता (टिलाई)।