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htakatattt.ttatatattatutatuttitutikattattatst.ttaye ११०२ ऋविवरवनारसीदासः ।
rammamerram. .. camerraneamrore.mr a w..rammarwar समीप खड़े हो गये । जब किसी मुनिकी दृष्टि उनकी ओर आती थी, तब वे अंगुली दिखाके उसे चिढ़ाते थे। मुनियोंने । उनकी यह कृति कई बार देखके मुख फेर लिया, परन्तु कविवरने अपनी अंगुली मटकाना बन्द न किया। निदान मुनि
द्वय क्षमा विसर्जन करनेको उद्यत हो गये । और भक्तजनोंकी ओर * मुंह करके बोले, कोई देखो तो वागमें कोई कूकर ऊधम मचा
रहा है। इतने शब्दोंके सुनते ही जब तक कि लोग वागमें देखॐनेको आये, कविवर लम्बे २ पैर रखके नौ दो ग्यारह हो गये ।।
देखा तो वहां कोई न था । वनारसीदासजी पैर बढ़ाये । हुए चले जा रहे थे । फिरके मुनि महाशयोंसे कहा, महाराज! वहां और तो कूकर शूकर कोई न था, हमारे यहांके सुप्रतिष्ठित पंडित बनारसीदासजी थे, जो हम लोगोंके पहुंचनेके पहिले ही वहांसे चले गये । यह जानके कि, वह कोई विद्वान् परीक्षक था, मुनियोंको कुछ चिन्ता हुई, और दोचार दिन रहके वे अन्यत्र विहार कर गये । कहते हैं कि, कविवर परीक्षा कर चुकनेपर फिर मुनियोंके दर्शनोंको नहीं गये।
६ माषाकवियोंमें गोखामी तुलसीदासजी बहुत प्रसिद्ध हैं। । उनकी बनाई हुई रामायणका भारतमें असाधारण प्रचार है,
और यथार्थमें वह प्रचारके योग्य ही ग्रन्थ है। गोखामीजी बनारसीदासजीके समकालीन थे । संवत् १६८० में जिस समय तुलसीदासजीका शरीरसात हुआ था, बनारसीदासजीकी आयु केवल ३७ वर्षकी थी। इस लिये जो अनेक कथाओमें सुनते हैं कि, वनारसीदासजी और तुलसीदासजीका कई बार मिलाप हुआ था, सर्वथा निर्मूलक भी नहीं हो सक्ता ।
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