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सुभाषितमञ्रोगुरु ही श्रेष्ठ बन्धु है
वसन्ततिलकावृत्तम् जन्माटवीपु कुटिलासु विनष्टमार्गान् । येऽत्यन्तनिवृतिपथं प्रतिबोधयन्ति । तेम्योऽधिकः प्रियतमो वसुधातलेऽस्मिन् कोऽन्योऽस्ति बन्धुरपरः परिगण्यमानः ॥६६॥ अर्था'- जो ससार रूपा कुटिल अटवियो मे मार्ग' भूले हुए मनुष्यो को अविनाशी मोक्ष का मार्ग बतलाते है उनसे अधिक आदरणीय प्रियतम बन्धु इम पृथ्वीतल पर दूसरा कौन है ? ॥६६॥
गुरु वाक्य ही औषध है मिथ्यादर्शन विज्ञान सन्निपात निपीडनात् । गुरुवाक्यप्रयोगेण मुच्यन्ते सर्वमानवाः ॥७०॥ मर्थः- समस्त मनुष्य गुरुप्रो के वचन रूपी औषध के प्रयोग द्वारा मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञान रूपी सन्निपात की बीमारी से मुक्त हो जाते है ||७० । जगत मे गुरु ही रक्षक है कुटुम्बादिक नहो, यह बताते है
___शिखरणीच्छन्द । पिता माता भ्राता प्रियसहचरी सूनुनिवहः । । ।