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सुभाषितमञ्जरी के मर जाने पर विधवा के अन्य पुरुष के सपर्क से जो सन्तान होती है उसे गोलक कहते हैं ।
नित्यपूजास्वयं शस्तः प्रोच्यते विनयान्वितः ।
पूजकोक्तगुणोपेतः सर्वशास्त्ररहस्यवित् ॥२१॥ अर्थ-- जो विनय से सहित हो, पूजक के कहे हुए गुणो से सहित हो, तथा समस्त शास्त्रो के रहस्य को जानने वाला हो, वही पुरुष नित्य पूजा मे प्रशस्त कहा जाता है ॥२१॥
पूजा कौन करे ? मौनसंयमसम्पन्न देवोपास्ति विधीयाताम् ।
दन्तधावनशुद्धास्यै धौंतवस्त्रपवित्रितः ॥२२॥ मर्थ - जो मौन सयम से सहित हैं, दातौन के द्वारा जिनका मुख शुद्ध हो गया है तथा जो धुले हुए वस्त्रो से पवित्र हो ऐसे मनुष्यों के द्वारा भगवान की पूजा की जाती है ।।२२॥
प्रतिष्ठा के समय पूजा का अनधिकारी अतिवालोऽतिवृद्धश्च यतिदीर्घोऽतिवामनः ।
हीनाधिकाङ्गो व्याधिष्ठो भ्रष्टो पवान् ॥२३॥ मायावी दूपकोऽविद्वानर्थी क्रोधी च लोभवान् ।