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सुभाषितमञ्जरी अर्था -- जो आभूषण, वस्त्र, अस्त्र तथा मोह आदि के विकास रहित हो, निर्दोष हो और दशताल से जिसका निर्माण हुआ हो ऐसी जिन प्रतिमा शुभ होती है ।।१५।।
पूजा किस प्रकार की जाती है ? धौतवस्त्रं पवित्रं च ब्रह्मसूत्रं सभूषणम् । जिनपादार्चनागन्धं माल्यं धृत्वाऽर्चते जिनः ॥१६॥ अर्था:--धुले हुए पवित्र वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, जिन चरणचित की गन्ध और जिन चरण स्पर्शित माला धारण करजिनेन्द्र देव की पूजा की जाती है ॥१६॥
पूजा का प्राचार्य कौन हो सकता है ? दानशीलोपवासादि पुण्याचारक्रियारतः ।
एवं विधगुणाढयोऽहत्पूजकाचार्य इष्यते ॥१७॥ अर्थ -जो दान, शील, तथा उपवास आदि पुण्याचार विषयक क्रियाओ मे लीन हो तथा इसी प्रकार सम्यक्त
आदि अन्य गुरगो से युक्त हो वही अर्हन्त भगवान् का पूजकाचार्य हो सकता है ॥१७॥
पूज्य, पूजक, पूजा और पूजा का फल पूज्यो, जिनपतिः पूजा पुण्यहेतु र्जिनार्चना। ____ फलं साभ्युदया मुक्ति भव्यात्मा पूजको मतः ॥१८॥ अर्थ:- जिनेन्द्र भगवान् पूज्य हैं, भव्य जीव पूजक है
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