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________________ जिनेन्द्र स्तुति भस्त्रा के समान जान पडता है अर्यात लुहार को धोंकनी के समान बहुत छोटा जान पडता है, जिन्होने आठ कर्मों को नष्ट कर आठ उत्तम गुण प्राप्त किये हैं, जो पूजा के योग्य हैं, अच्युत है - विष्णु हैं पक्ष मे ज्ञानादिगुणो से सहित हैं। अज है-ब्रह्मा हैं (पक्ष मे जन्म से रहित है) बुद्ध हैं तथागत हैं (पक्ष मे ज्ञान सम्पन्न हैं ) मुनि हैं, विशिष्ट गुणो से सहित है ) और शङ्कर है-शिव है (पक्ष मे शान्ति करने वाले हैं ) ऐसे जिन देव का मैं हृदय से ध्यान करता हूँ वचन से उनकी स्तुति करता हू और मस्तक से आदर पूर्वक उन्हे नमस्कार करता हूँ 11७॥ शालिनी यद्वाग्ज्योतिः सप्ततत्वप्रकाशि देहज्योतिः सप्तजन्मवभासि । ज्ञानज्योतिः सप्तमङ्गयात्मभासि ज्योतिरुपः सोऽस्तु मे मोहनाशी ||८|| अर्थ- जिनकी वचन रूपी ज्योति सात तत्वो को प्रका. शित करने वाली थी, जिनके शरीर की ज्योति सात भवों को प्रकाशित करने वाली थी और जिनकी ज्ञान रूपी ज्योति सात भङ्गो के स्वरूप से सुशोभित थी ऐसी ज्योति स्वरूप को धारण करने वाले वे जिनेन्द्र मेरे मोह को नष्ट करने वाले हो ॥८॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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