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सुभाषितमञ्जरी
मुनियों का चारित्र दुर्लभ है भव्यजीवा यदासाद्य लभन्ते संशयोज्झितम् । सम्यग्दर्शनसम्पन्ना गीर्वाणेन्द्रसुखं महत् ।। चारित्रं निरगाराणां शूराणां शान्तचेतसाम् । शिवं सुदुर्लभं सिद्ध सारं क्षुद्रभयावहम् ।।२६५॥ अर्थ- सम्यग्दर्शन से युक्त भव्यजीव जिसे पाकर निस्सन्देह इन्द्रों के बहुत भारी सुख को प्राप्त करते है तथा अतिशय दुर्लभ मोक्ष को भी प्राप्त होते है वह शूरवीर शान्त-चित्त मुनियों का चारित्र है। यह चारित्र अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा कायर पुरुषों को भय उत्पन्न करने वाला है ॥२६॥
जिनमार्ग के श्राश्रय विना इन्द्रियाँ शान्त नहीं होती चलान्युत्पथवृत्तानि दुःखदानि पराणि च । इन्द्रियाणि न शाम्यन्ति विना जिनपथाश्रयात् ।।२६६॥ अर्थाः-चञ्चल, कुमार्ग मे प्रवृत्त और अत्यन्त दुःख देनेवाली इन्द्रियाँ जिनमार्ग का आश्रय लिये विना शान्त नहीं होती।
तप से आत्मा शुद्ध होता है यथाग्निविधिना नप्तं द्रुतं शुध्यति काञ्चनम् । तथा कर्मकलङ्की चात्मा सुतपोऽग्निना ध्र वम् ॥२६७॥