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सुभाषितमञ्जरो अर्था:- उष्णकाल में जल देना चाहिये, शीतकाल में वस्त्र देना चाहिये, वर्षाकाल मे घर देना चाहिये ओर भोजन सब समय देना चाहिये ॥२४४॥
दान प्रशंसा
दान महिमा दानं दुर्गतिनारानं हितकरं दानं बुधाः कुर्वने दानेनैव गृहस्थता गुणवती दानाप यत्न सताम् । दानान्नास्त्यपरः सुभोगजनको दानस्य योग्या विदो दाने दातृमनःस्थितिं प्रकुरुते दानं ददध्वं जनाः ।।२४५॥ अर्थ-दान दुर्गति को नष्ट करने वाला है, विद्वान् लोग हितकारी दान देते हैं, दान से ही गृहस्थपना सफल होता है, दान के लिये सत्पुरुषों का प्रयत्न होता है, दान से बढ़ कर दूसरा कोई भोगों को उत्पन्न करने वाला नहीं है, विद्वान् दान देने के योग्य है, दाता का मन दान में स्थिर होता है इसलिये हे भव्यजनो ! दान देओ ॥२४॥
दान कीर्ति का कारण है दानानुसारिणी कीर्ति लक्ष्मीः पुण्यानुसारिणी। अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥२४६॥