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________________ ८६ सुभाषितमञ्जरी अर्थ · रोगियो को औषध देना चाहिये क्योकि रोग शरीर के नाशक हैं, शरीर का नाश होने पर ज्ञान कैसे हो सकता है और ज्ञान के बिना निर्वाण कैसे प्राप्त हो सकता है ? ॥२१॥ औषधदान से मनुष्य निरोग होता है । तस्मात् स्वशक्तितो दानं भैाज्यं मोक्षहेतवे। देय स्वयं भवेऽन्यस्मिन्भवेद् व्याधिविजितः ॥२२॥ अर्थ :- इसलिये मोक्ष प्राप्ति के निमित्त अपनी शक्ति के अनुसार औषधदान देना चाहिये क्योकि अौषधान देने वाला स्वय अन्यभव मे रोगो से रहित होना है ।।२२०।। निरोग मनुष्य का सुख अकथनीय है। श्राजन्म जायते यस्य न व्याधिस्तनुतापकः । कि सुखं कथ्यते तात्य सिद्धस्येव महात्मनः ।।२२१॥ अर्थः- जिम मनुष्य के शरीर मे सताप उत्पन्न करने वाला रोग जीवन पर्यन्त नहीं होता सिद्ध महात्मा के ममान उमके' सुख का क्या कहना है, उसका सुख वचनअगोचर है ॥२२१।। । औषधदान देने वाले के रोग नष्ट होते है ध्वान्तं दिवाकरस्येव शीतं चित्ररुचेरिख ।। भैषज्यदायिनो देहाद् रोगित्वं प्रपलायते ॥२२२॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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