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ज्ञानानन्दरत्नाकर। चारों गण अशुभ बचाना चहिये । पिंगल विन जाने कभी न गाना चाहिये ॥ ३ ॥ लघु । इक मात्रिक को कहें सुनो कविभाई , दीर्घ दो मात्रा आदि सुनो मनलाई द्वत्व की आदि में वर्ण पडे जो आई , दघि जानों शिक्षागुरु ने वतलाई , कहैं नाथूराम जिन भक्त सो माना चहिये । पिंगल विन जाने कभी न गाना चहिये ॥ ४ ॥
ऋषभदेव स्तुति १७॥
श्री मरु देवी के लाल नाभि के नन्दन । काटो आगे विधि जाल नाभि के नन्दन ॥ टेक ॥ सुर अंचे तुम्हें त्रिकाल नाभि के नन्दन . सौ इन्दू नवामें भाल नाभि के नन्दन , तुम सुनियत दीनदयाल नाभि के नन्दन , स्वार्थ बिन करत निहाल नाभि के नन्दन , कीजे मेरा प्रतिपाल नाभि के नन्दन । काटो आठो विधि जाल नाभि के नन्दन ॥ १ ॥ लखि तुम तनु दीप्ति विशाल नाभि के नंदन , हो कोटि काम पामाल नाभि के नंदन , त्रिभुवन का रूप कमाल नाभि के नंदन , मानो सांचे दिया ढाल नाभि के नंदन , दर्शत नाशे अघ हाल नाभि के नंदन । काटो आठो विधि जाल नाभि के नंदन ॥२॥ तनु वजू मई मय खाल नाभि के नंदन , ताये सोने सम लाल नाभि के नंदन , मल रहिन देंह सुकुमाल नाभि के नंदन , वाहें ना नख अरु वाल नाभि के नंदन , यह शुभ अतिशय का ख्याल नाभि के नंदन । काटो आठो विधि जाल नाभि के नंदन ॥ ३ ॥ जो तुम गुण माण की माल नाभि के नंदन , कण्ठ धरै प्रात:काल नाभि के नंदन , लहि सुर नर सुख तत्काल नाभि के नंदन , पावे शिव संयम पाल नाभि के नंदन यही नाथूराम का सवाल नाभि के नंदन । काटो आठो विधि जाल नाभि के नंदन ॥ ४ ॥
पारसनाथ की स्तुति ४८। ।
तुम मुनियत तारण तरण लाल बामा के, मैं आया थारे शरण लाल