________________
ज्ञानानन्दरत्नाकर। कर बात कहै ताते फिर विवाद ठाना ना चाहिये । अनर्थ कारण खेम नी रिहलाना ना चाहिये । हित उपदेश सुनेना उससे मगज पचाना ना चरिये । भाभिमानी के पास क्षण एक मी नाना ना चहिये । गित्र ला. नची होय उसे निज वस्तु दिखाना ना चहिये । करण विषय के स्वाद में चित्त पगाना ना चाहिये ।। २।। धर्म द्रोह अन्याय तह निज पास पसाना ना चाहिये । दुष्ट मनुन से कभी स्नेह बढ़ाना ना चाहिये ।। सुकून कमाई करो देख परधन ललचाना ना चहिये । परमाप में दूव्य खर्चतं अलसाना ना चाहिये । इष्ट वियोग अनिष्ट योग लख चित्त चलाना ना चाहिये । करण विषय के स्वाद में चित्त पगाना ना चहिये ॥ ३॥ विद्या विसन विना निशि पासर काल पिताना ना चहिये । भये उपस्थित भापदा फिर घबराना ना चाहिये ।। कगुरु कुदेव कवर्ग इन निज शीश नवाना ना चहिये । दुखी द. रिट्री दीन को कभी सताना ना चहिये ।। नायराम गिन भक्त धर्म में शक्ति छिपाना ना चहिये । करण विषय के स्वाद में चित्त पगाना ना चहिय।। ४ ।।
॥सिदगुण २९॥
माख गोचर अविनाशी मत्र सिद्ध करात शिस थान में हैं । सर्व विश्व के वय पनि भारत जिनके ज्ञान में हैं || टेक || ज्ञानावरणी नाश अ. जन्ती ज्ञान कला भगवान में है । नाश दाशनावरण सब देखें ज्ञेय जहान में ॥ नाश गोहनी लायक सम्यक युत दृढ निम श्रद्धाण में है। अन्नराय का नाश बल भनन्त युत निर्माण में हैं | श्रायु कर्म के नाश भये हैं अचल सिद्ध स्थान है। सर्व विश्व के ज्ञेय प्रति भासत जिनके ज्ञान में ॥१॥ नाम कर्म हनि भये अमूर्तियन्त लीन निज ध्यान में हैं । गोन कम हन अगुरू मधु रानत थिर असमान में है || नाश वेदनी भये अवा थित रूप मग्न मुवतान में हैं । अपार गुण के पुंज अर्हन्तन की पहिचान में है। श्राजर अमर अव्यय पदधारी सिद्ध सिद्ध के म्यान में है। सर्व विश्व के नेय प्रति भासत जिनके ज्ञान में है ॥२ ॥ अक्षय अभए आखल