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ज्ञानानन्दरत्नाकर। जिनेश्वर परमेश्वर भगवन्त नमो | टेक ॥ रहित पसेव देर मल वजित श्वेन रुधिर अति सुन्दर तन | प्रथम संहनन प्रथम स्थान सुगधित तन भगवन ॥ प्रिय हित वचन अतुल बल सोई एक सहस्त्र पसुतन लक्षण । ये दश अतिशय कहे जन्मत मभुके सुनिये पविजनापति श्रुति अवधि ज्ञानयुत जन्मत सुर नरादि ध्यावन्त नग । त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवन्त नौ ॥ १ ॥ दो सो योजन काल पड़ना करें प्रभूनी गंगणगयन । चौमुख दरग सर्व विद्या हो ना प्राण वचन | वर ऐश्वर्य न कच नख बढ़ते नहीं लागे टाकार न. यन । तनकी छाया न पहती नहीं कवला शाहार ग्रहण ॥ केवल ज्ञानभये दश अतिशय ये प्रभु के राजत नौ । त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर म. गवन्त नयाँ ॥ २ ॥ सकल भर्थ मय मागधी भापा जाति विरोध तजा नी. वन । पट ऋतु के फल पुष्प तिनकर शोभित अति सुन्दर वन ॥ पुष्प वृष्टि गन्धोदक वर्षा वागे मन्द सुगन्ध पवन | जय जय होते शब्द मेदिनी विराणे ज्यों दर्पण | रचे कमल सुर पद तल प्रभु के सर्व जीव हर्षन्तनमा । त्रिभुवन ईश्वर शिवा परमेश्वर भगवन्त नमो ॥ ३॥ विमल दिशा आकाश बिना कंटक भचना कीनी देवन । मगल द्रव्य पाठ जप चक प्रगाड़ी चले गगण ये चौदह देवन कृत अतिशय सुनो चतुष्टय अनदे मन । अनन्त दर्शन ज्ञान मुख बल प्रभु के राजे शुचिधन ।। ऐसे गुण भण्डार विराजत शिव रमणी के कन्त नमो । त्रिभुान ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवन नमः ॥ ४ ॥ तरु म शोक मागंडल गोडे तीन छत्र अरु सिंहासन । चमर दिव्य ध्वनि पुष्प वपारु दुंदुभी नम बाजन ।। प्राति हार्य ये आठ सर्व चालिस गुण जिनवर के पावन । जो भविषार नितप्ती न करें भव में पावन ॥ ऐसे श्री अति जिनके गुण गान करत नित संतनों । त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवन्ननमो ॥५॥ क्षुधा तृपा भय राग द्वैप विस्मय निद्रा मद अगुहावन । भारनि चिना शोक गद स्वेद खेद जरा जन्म मरण । मोह अठारह दोष रहित ऐसे जिनवा पद करों नवन । त्रिभुवन त्राता विधाता घाति का जिन डाले हन । नाथूराम निश्चय अनंव गुण समरत अघ भाजत नमो । त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर पर मेश्वर भगवत नौ ॥६॥ ॥हितोपदेशी २७॥
जगमणि नर भव पाय सयाने निज सुरूप ध्याना चहिये । जबतक शिव