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ज्ञानानन्दरत्नाकर।
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आये कत्ती । उतारन इष्ट शिष्ट का भार । नाथूराम रहै मुनो मई । सुनत सबसंशय मिट जाईजी ।।
॥ लावनी २५॥
विष्णु कुमार चरित्र अनुपप निग वनिशा अभिमान हरा | ऋपि रक्षाको विक्रिया ऋद्ध से य.चन रूपधा | टेक पालव दंश उज्जयनी नारी श्री वर्मा तह का भुपाल । निमके मंत्री चार दिन महा अहंकारी मनुव्याल ! प. हिला इलि पुन नमुचि वृहस्पति अरुपहलाद महा भदबाल । विहार करते तहां मुनि सात शनक आये गुण माल ।। महा मुनीश अकंपन तिनां प्राचार्य सुज्ञान ग्वरा | ऋपि रक्षा को विक्रिया ऋद्धि मे बावनरूप धरा ॥ १ ॥ अवधि ज्ञान निचार कंपन शिष्यों को अदिश दिया । पुर बामिन से न कीजो बाद सभी सन मौन लिया || परचा सागर गुरु याज्ञा के प्रथमही नग्र प्रवेश किया पारण कारण गया मुनि नगरी में आहाराविरिया ॥ इबर नगर जन सुन मुनि
आगम चन्दन का उत्साह करा | ऋपि रक्षा को मिक्रिया ऋद्धि से वादनला घरा ॥ २ उत्सव सहित नगर जन जाने देख नृपति पूछी एसकर | कहिए मंत्री कहां ये जांय महोत्सव से सजकर ॥ बोला चलि वन वीच दिगम्बर मुनि पूजन जाते चलकर । तत्र नृप मंत्री साथ ले पूजन धाया आनंदकर ।। द्रव्यभाव युत पने मुनिवर बहुत सुयश मुख से उचा। ऋपि रक्षाको विक्रिया ऋद्धिसं बावनरूप धारा ॥ ३ ॥ वारवार नृप को धन्य मुनि ध्यानारूढ दिगम्बर ये। जिन दही से सदा निस्नेह करें तप दुद्धा ये ॥ तृणकंचन रिपु पित्र गिने सम महै परीषद तप कर ये । राम द्वैष अरु मोह तज वीतराग तिवरये ॥ करें चितवन निज प्रातम का मैटन जन्मन मरण जरा | ऋषि रक्षाको विक्रिया ऋद्धिसे बावन रूप धरा ॥ ५॥ मौन घर बेठे सब मुनिवर काहू न मुनिको दई अशीम । तब हंसकर मंत्री कही यहां से गृहको चलिये अविनीश ।। ये शल धारे ढोंग वृधा सहते है क्लेश तनबने मुनीश । भेद न जाने कहा तप होय सत्य जानों धरनीश || करत भये निदा सबमुनि की मत्री द्वैपयोगमा ऋपि रक्षा को विक्रया ऋद्वि मे बाबा रूप धरा ॥ ५ ॥ बहु विधि स्तुतिकर नृप लौटा